सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

सरकार की ढिठाई से बेलगाम होती महंगाई


महंगाई कम करने का जादुई तरीका रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने इजाद किया है जब-जब महंगाई बढती है तो आरबीआई अपने जादुई तरीके को अपनाते हुए रेपो रेट और रिवर्स रोपो रेट को बढा देती है परिणाम स्वरूप सभी बैंक व्याज दर में इजाफा कर देती है जिसका असर होम लोन, कार लोन, गूड्स करियर लोन, बिजनेस लोन, पर पड़ना तय है इसके लिए ज्यादा रूपये किस्त के रूप में बैंक को चुकता करना पड़ेगा. अब अगर विभिन्न कारणों से व्याज के रूप में ज्यादा पैसा बैंक को अदा करना पड़े तो महंगाई कैसे रुकेगी?

लगातार बढ़ रही महंगाई से पहले से ही परेशान आम भारतीयों के बजट पर सरकार नें इस सप्ताह फिर से एक बार कुठाराघात किया. इधर पेट्रोलियम कंपनियों नें पेट्रोल के दाम ३.१४ रूपये बढ़ाये तो उधर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया आम आदमी को राहत देने के बजाय सभी तरह के लोन को महंगा करने की व्यवस्था कर दी ऊपर से तुर्रा यह कि यह सब महंगाई को काबू करने के लिए किया जा रहा है. महंगाई को काबू करने के नाम पर पिछले १८ महीनों में १२ बार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया नें रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में २५-२५ बेसिस पाइन्ट्स की बढोत्तरी कर दी इस समय रेपो रेट ८.२५ और रिवर्स रेपो रेट ७.२५ पाइन्ट्स हो गया है. दरसल रेपो रेट का मतलब रिजर्व बैंक अन्य बैंकों को रेपो रेट पर उधार देता है और रिवर्स रेपो रेट का मतलब रिजर्व बैंक रिवर्स रेपो रेट पर अन्य बैंकों से उधार लेता है. जब हम महंगाई दर की चार्ट पर नजर डालते है तो हमें पता चलता है कि अगस्त के महीने में महंगाई दर बढ़कर ९.७८ फीसदी के साथ १२ महीने के उच्चतम स्तर तक जा पहुंची है. खाद्य महंगाई दर भी ३ सितंबर को खत्म हुए सप्ताह में लगातार छठवे सप्ताह भी ९ फीसदी के ऊपर रहते हुए ९.४७ फीसदी पर रही. बेकाबू हो रही महंगाई को रोकने में नाकाम सरकार अपने हाँथ खड़े कर रही है. और सामान्य उपभोक्ता वस्तुओं को महँगा करना अपनी मजबूरी बता रही है.

सरकार द्वारा लगातार महंगाई बढ़ाना क्या जनविरोधी कदम नहीं है ? गुरुवार रात से पेट्रोल के दाम ३.१४ रूपये बढा दिए गए इसी के साथ इस साल जनवरी से लेकर अब तक लगभग १० रूपये पेट्रोल के दाम में बढ़ोत्तरी कर दी गई है. पेट्रोल के दाम बढ़ाये जाने को लेकर सरकार द्वारा जो बार-बार बहाना बनाया जाता है वह है पेट्रोलियम कंपनियों को लगातार घाटा होना. जिस तरह से पेट्रोलियम कंपनियों के घाटे की बात की जाती है उसके हिसाब से अब तक पेट्रोलियम कंपनियों को दिवालिया हो जाना चाहिए था. किन्तु ऐसा न होकर पेट्रोलिय की कीमतें बढाये जाने के कारण आम आदमी लगातार आर्थिक रूप से दिवालिया हो रहा है. पेट्रोलियम पदार्थों के कीमतों की बढ़ोत्तरी के पीछे अनुमानत: औद्योगिक घराने ही हैं. क्योकिं इन औद्योगिक घरानों के पेट्रोलियम पदार्थों के (रिटेल चेन) पेट्रोल पम्प इस लिए बंद करने पड़े थे क्योकि कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों को बेलआउट देती थी जिससे उनका नुकसान जो कि सब्सिडी देने पर होता था उसकी भरपाई हो जाती थी और प्राइवेट कंपनियों के नुकसान की भरपाई नहीं हो पा रही थी. अब सरकार उन्ही कंपनियों के हितों के मद्देनजर लगातार पेट्रोलियम के दाम बढाती जा रही है. जिससे कि एक बार फिर से पेट्रोलियम के कारोबार में लगे औद्योगिक घराने पेट्रोलियम पदार्थों के (रिटेल चेन) पेट्रोल पम्प खोल सकें.

व्याज दर बढ़ाकर महंगाई कम करने का जादुई तरीके को समझना मुश्किल है. प्राप्त जानकारी के अनुसार महंगाई कम करने के नाम पर आरबीआई नें पिछले ३ वर्षों में कुल १२ बार व्याज दरों में बढ़ोत्तरी की लेकिन क्या महंगाई कम हुई. वस्तुत: महंगाई कम नहीं होगी उसके कारण सीधे और स्पष्ट हैं भारत सरकार को अनाज, दालें, खाने के तेल, फल आदि, बहुराष्ट्रीय निगमों के (रिटेल चेन) शापिंग माल में बेचने और मुनाफा कमाने का अवसर देना जो है. अब अगर १०-२० रूपये किलो अनाज, दालें, खाने के तेल, फल आदि बेचे जायेगे तो शापिंग माल बनाने में किये गए पूंजी निवेश का रिटर्न या माल के कर्मचारियों की तनख्वाह और रखरखाव तो छोडिये शापिंग माल में लगे सेन्ट्रल एसी के लिए उपभोग की गई बिजली का बिल नहीं भरा जा सकेगा. जमाखोरी के विरुद्ध आपने आढ़तियों के गोदामों पर छापेमारी करते हुए खाद्यान विभाग के अधिकारियों को देखा होगा लेकिन क्या कभी आपने यह भी सुना कि रिटेल चेन के कारोबार में संलग्न बहुराष्ट्रीय निगमों के वेयरहाउसों (जहाँ खाद्यान का बंफर स्टाक जमा करके रखा जाता है) में खाद्यान विभाग के अधिकारियों द्वारा छापेमारी की गई?

अब सरकार यह कहती नजर आ रही है कि महंगाई से हो रही जनता की तकलीफों के लिए हमें खेद है लेकिन चीजों के दाम बढ़ाना हमारी मजबूरी है, सरकार में बैठे लोगों से सवाल किया जाना चाहिए कि महंगाई बढ़ाना आपकी मजबूरी है, भ्रष्टाचार में आपके संतरी से लेकर मंत्री तक सभी आकंठ डूबे हुए है इसलिए भ्रष्टाचार आप मिटा नहीं सकते, आतंकवाद से निपटना आपके बूते का नहीं तो आप सत्ता से क्यों चिपके है. इधर महंगाई सुरसा की तरह बढ़ रही है और उधर आपके मंत्रियों की संपत्ति में हजार-हजार प्रतिशत का इजाफा हो रहा है ! आखिर माजरा क्या है ? छठे वेतन आयोग को लागू करने के भार से अभी केन्द्र सरकार उबर नहीं पायी थी कि केन्द्र सरकार नें १ जुलाई २०११ से अपने कर्मचारियों को ७ प्रतिशत डीए बढा दिया है. इस फैसले से केन्द्र सरकार के ५० लाख कर्मचारी और ४० लाख पेंशनर को फायदा मिलेगा इससे सरकार पर सालाना ७,२२८,७६ करोड रूपये का अतिरिक्त भार होगा. यहाँ यह समझ में आता है कि सरकार का एकमेव उद्देश्य रह गया है... महंगाई बढाओ, आम जनता को लूटो, सरकारी खजाने भरो, और फिर उसे सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों, पार्षदों, विधायकों, सांसदों, और मंत्रियों में बंदरबाँट करो.

१९९१ से लेकर आज तक केवल और केवल देश की सार्वजनिक निगमों को जिसे नवरत्न कहा जाता था. उन्हें पूजीपतियों के पक्ष में न केवल हलाल किया गया वरन एनडीए शासनकाल में (डिस्इन्वेस्टमेंट) विनिवेश मंत्रालय बनाकर औद्योगिक घरानों के हवाले किया गया, जनहित से जुड़े क्षेत्र एक-एक कर औद्योगिक घरानों के हवाले किया जा रहा है, चाहे वह बैंकिंग का क्षेत्र हो, शिक्षा का क्षेत्र हो, चिकित्सा का क्षेत्र हो, खनन का क्षेत्र हो, यहाँ तक कि बिजली और पानी भी. उधर मंदी से अमेरिका का दम निकल रहा है अमेरिकी बांडों की साख लगातार गिर रही है फिर भी क्या कारण है कि डालर के सामने रूपया (रूपये का अवमूल्यन हो रहा है) लगातार टूट रहा है. आखिर इस समय रूपये के अवमूल्यन का रहस्य क्या है? क्या रूपये का अवमूल्यन निर्यात के व्यवसाय से जुड़े पूंजीपतियों के इशारे पर किया जा रहा है? रइस मंत्रियों के तले देश का दम घुट रहा है और आम आदमी को हासिए पर फेंक दिया गया है.

अब सरकार की नीतियां और सोच मुनाफा बनाने तक ही सीमित हो गई है मुनाफा बनाना ही विकास है. “कल्याणकारी राज्य” अब “मुनाफाखोर राज्य” में तब्दील होता दिख रहा है. सरकार अभी और भी कड़े फैसले लेने की बात कर रही है. रसोई गैस और रेल यात्री/माल किराये में वृद्धि. यानि आम आदमी अभी और अपनी आर्थिक रीढ़ पर महंगाई का वार सहने को को तैयार रहें. अरे सरकार उनके हितों की सुरक्षा के लिए क्यों कड़े फैसले नहीं ले रही है जिसके मतो से वह सत्ताशीन हुई है. स्पष्ट दीखता है कि भारतीय लोकतंत्र को सरकार नहीं बल्कि देश के कुछ चुनिन्दा वकीलों के माध्यम से बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने मन मुताबिक हांक रही हैं. महंगाई बढ़ाकर आम आदमी का जेब काटने से लेकर किसानों और आदिवासीयों के हिस्से का जल, जंगल और जमीन लूटने की कयावद जारी है. किन्तु यूपीए सरकार की कैबिनेट द्वारा तेज टिकाऊ और समग्र विकास का जुमला फेंका जा रहा है अब इस जुमले का आम आदमी क्या करे ? वैसे तो यह सभी को पता है कि सत्ता हाँथ में आते ही जैसे कांग्रेस के पिछले जुमले “कांग्रेस का हाँथ गरीब के साथ” को पलट दिया था वैसे ही आम आदमी तेज टिकाऊ और समग्र विकास को अपने साथ जोड़कर न देखे क्योंकि यह जुमला सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों, पार्षदों, विधायकों, सांसदों, और मंत्रियों और पूंजीपतियों के लिए है आम आदमी के लिए नहीं.


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