गुरुवार, 12 अगस्त 2010

तेल के नाम पर खतरनाक खेल


हम सभी को समझना होगा कि भारत में एक लीटर पेट्रोल की कींमत 53 रूपये है ऐसा क्यों? और सरकार लगातार पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढ़ोत्तरी करती जा रही है. आखिर तेल के नाम पर अपने देश के हुक्मरान कौन सा खतरनाक खेल खेल रहे हैं?

5 जुलाई को विपक्षी दलों नें भारत बंद का आयोजन किया, मुख्य मुद्दा था सरकार द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों के बेतहासा दाम बढ़ाया जाना. विपक्षी दलों नें इस भारत बंद को बेहद सफल बताया तो कार्पोरेट संस्था एसोचेम नें इस बंद के कारण 10 000 करोड़ रूपये के अनुमानित नुकसान होने की बात कही, वही पेट्रोलियम मंत्रालय जो कि मूल्य वृद्धी के पहले सार्वजनिक पेट्रोलयम कंपनियों के घाटे का रोना रोती है, उन्होंने करोड़ों रूपये का मीडिया को विज्ञापन देकर आम जनता को यह बताने की कोशिश की कि पेट्रोलियम पदार्थों के कीमतों का बढ़ाया जाना गलत नहीं है. इन सबके मद्देनजर आम जनता अवाक् होकर यह ड्रामा देखती रही. उसे पता है कि अब महंगाई कम होने वाली नहीं है. आश्चर्य तो यह है कि देश का प्रबुद्ध वर्ग इस पेट्रोलियम मूल्य वृद्धी घोटाले पर अवाक् है या नहीं यह तो नहीं पता लेकिन चुप जरूर है. संभव है कि आगे चलकर पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृद्धि " पेट्रोलियम पदार्थ मूल्य वृद्धी घोटाला" के नाम से जाना जाये यह मूल्य वृद्धी हमें "पन्ना-मुक्ता-तेलक्षेत्र'' घोटाले की याद दिला रहा है जिसमें सरकार नें लगभग पूरा का पूरा तेल क्षेत्र मुफ्त में निजी कंपनियों को दे दिया. पन्ना-मुक्ता-तेलक्षेत्र का पता लगाने हेतु सारी मेहनत ओएनजीसी नें की थी किन्तु सरकार नें अपनी ही कंपनी को निकम्मा साबित करते हुए रिलायंस को काबिल बताया.

पिछले दिनों रिलायंस नें पूरे देश में 1432 और एस्सार नें 1100 पेट्रोल पम्प खोले थे किन्तु भारत सरकार की तरफ से लगातार पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में इजाफे के कारण उक्त निजी कंपनियां सार्वजनिक क्षेत्र की तीनों कंपनी इंडियन ऑयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड और भारत पेट्रोलियम लिमिटेड को सरकार के तरफ से सरकारी अनुदान मिल रहा था. वर्ष 2007-08 में इसी वजह से रिलायंस को 800 करोड़ रूपये का घाटा उठाना पड़ा. और रिलायंस को पेट्रोल पम्प बंद करने का निर्णय लेना पड़ा किन्तु रिलायंस पेट्रोल पम्प का डीलरशीप लेने वाले व्यापारी लगातार रिलायंस पेट्रोलियम के प्रबंधन पर "रिलायंस पेट्रोल पम्प डीलर्स एसोसियेशन" के बैनर तले दबाव डालते रहे कि या तो कंपनी फिर से पेट्रोल पम्पों को शुरू करने का तरीका ढूढे अथवा पेट्रोल पम्प डीलर द्वारा रिलायंस के पेट्रोल पम्पों में किये गए निवेश को वापस करे. इधर डीलर मालिकों और संचालकों (डीओडीओ) नें मिलकर एक प्रस्ताव पारित किया था कि भूमि के पट्टे को रद्द कर पेट्रोल पम्पों में लगे उपकरणों को बाजार के कीमत पर कंपनी खरीदे अथवा पेट्रोल पम्प फिर से शुरू कराए. सूत्रों के अनुसार रिलायंस समूह के अध्यक्ष परिमल नाथवानी नें "रिलायंस पेट्रोल पम्प डीलर्स एसोसियेशन" से इस समस्या के समाधान के लिए कुछ समय ( 6 माह ) माँगा था. अगर रिलायंस के पेट्रोल पम्प को सुरू करने जैसे समाधान पर विचार करें तो वह केवल और केवल सरकार द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों पर से सब्सिडी हटवाने के शिवाय और कुछ था ही नहीं. रिलायंस नें एक वर्ष में करीब 40 लाख टन डीजल बेंचकर बाजार के 15 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा बना लिया था किन्तु कंपनी को कच्चे तेल के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उछाल के बीच सरकार नियंत्रित मूल्य पर डीजल, पेट्रोल बेंचना घाटे का सौदा हो गया था. अत: रिलायंस के पेट्रोल पम्प फिर से शुरू करने हेतु पेट्रोलियम पदार्थों से सब्सिडी हटाकर बाजार के नियंत्रण पर छोडना जरूरी था.

यह हम सभी को समझना होगा कि भारत में एक लीटर पेट्रोल की कींमत 53 रूपये है ऐसा क्यों? भारत में एक लीटर पेट्रोल की लगत 16।50 रूपये पड़ती है. एक लीटर पेट्रोल पर 11.80 रूपये केन्द्रीय कर, 9.75 रूपये एक्साईज ड्यूटी, 8 रूपये से लेकर 12 रूपये प्रति लीटर राज्य सरकारों का कर और 4 रूपये सेस वसूला जाता है. इन आंकड़ों को देखते हुए सरकार की दलील पर कैसे यकीन किया जा सकता है कि सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को घाटा हो रहा है. रिकार्ड बताते है कि वर्ष 2008-09 में इन्डियन आयल कार्पोरेशन को 2950 करोड़ रूपये का शुद्ध मुनाफा हुआ, 31 मार्च 2010 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में आईओसी को शुद्ध मुनाफा 10998 करोड़ रूपये हुआ, एचपीसी और बीपीसी नें क्रमश: 544 और 834 करोड़ रूपये का शुद्ध मुनाफा कमाया वर्ष 2009-10 में पेट्रोलियम सेक्टर द्वारा कर,ड्यूटी,लाभांस इत्यादि के रूप में सरकारी खजाने में 90 000 करोड़ रूपये जमा हुए और वर्ष 2010-11 में सरकार को पेट्रोलियम सेक्टर से 1 20 000 करोड़ रूपये से ज्यादा आय होने का अनुमान है.

सरकार कहती है कि पेट्रोलियम पर जितना खर्च हो रहा है उतने की वसूली नहीं हो पा रही है सरकार यह भी कह रही है कि पेट्रोल,डीजल, रसोई गैस और मिट्टी के तेल को बड़ी मात्रा में सब्सिडाईज करना पड़ रहा है केन्द्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार सरकारी राशन की दुकानों से वितरित किये जाने वाले मिट्टी के तेल पर 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में क्रमश: 970, 978 और 974 करोड़ रूपये की सब्सिडी दी गई बदले में इन्ही वर्षों में केन्द्र सरकार नें क्रमश: 17883, 19102 और 28225 करोड़ रूपये सरकारी राशन की दुकानों के जरिये वसूले. इसी तरह रसोई गैस पर केंद्र सरकार नें 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में क्रमश: 1554, 1663 और 1714 करोड़ रूपये की सब्सिडी दी बदले में इन्ही वर्षों में केन्द्र सरकार नें क्रमश: 10701, 15523 और 17600 करोड़ रूपये वसूल किये यानि मिट्टी के तेल और रसोई गैस से कुल मिलाकर 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में क्रमश: 2524, 2614 और 2688 करोड़ रूपये दिए और इन्ही वर्षों 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में मूल्य वृद्धि करके क्रमश: 28584, 34625 और 45825 करोड़ रूपये वसूले. इसी तरह डीजल में 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में क्रमश: 18776, 35166 और 52286 करोड़ रूपये और पेट्रोल में 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में क्रमश: 2027, 7332 और 5181 करोड़ रूपये वसूले.

पेटोलियम पदार्थों को बाजार के नियंत्रण पर छोडऩे वाली यूपीए सरकार का विरोध करने का स्वांग रचने और भारत बंद में अग्रणी भूमिका निभाने का दावा करने वाली प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा अपने कार्यकाल में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को यूपीए सरकार की ही तरह बेतहासा बढ़ाया था। वर्ष 1998 में जब एनडीए के माध्यम से भाजपा सत्ता की बागडोर संभाली तो पेट्रोल 23 रूपये लीटर डीजल 10.25, रूपये रसोई गैस 136 रूपये और मिट्टी का तेल 2.50 रूपये था किन्तु वर्ष 2004 में पेट्रोल 34 रूपये, डीजल 21.74 रूपये, रसोई गैस 242 रूपये और मिट्टी का तेल 9 रूपये हो गया यानि पेट्रोल 50 फीसदी, डीजल 111 फीसदी, रसोई गैस 90 फीसदी और मिट्टी के तेल में 300 फीसदी बढोत्तरी की इस लिहाज से कांग्रेस 2004 में जब सत्ता संभाली तो पेट्रोल की कींमत 34 रूपये प्रति लीटर थी वह अब 53 रूपये, डीजल 21.74 रूपये थी अब 41 रूपये रसोई गैस 242 रूपये थे अब 345 रूपये, मिट्टी के तेल की कींमत 9 रूपये से अब 12 रूपये अर्थात पेट्रोल 50 फीसदी, डीजल 90 फीसदी, रसोई गैस 45 फीसदी और मिट्टी के तेल में 33 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है.


यह लगभग सभी को पता है कि क्यों और किसके लिए इस तेल के खेल को खेला जा रहा है. यह मूल्यवृद्धि कांग्रेस की लोकप्रियता के कींमत पर की जा रही है इस मूल्य वृद्धि से मनमोहन का कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योकि यह उनकी आखिरी पारी है किन्तु कांग्रेस और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को यह आत्ममंथन करने का समय है कि कांग्रेस की उर्बरा शक्ति कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और देश के आम नागरिकों के लिए है कांग्रेस की उर्बरा शक्ति मनमोहन और उनकी चौकड़ी के माध्यम से पूंजीपतियों के लिए देश के संसाधनों के अबाध लूट का रास्ता बनाने के लिए है. जब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बनाये गए थे तो देश की आम जनता को यह बताया गया था कि हमें अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मिला है राष्ट्र आर्थिक संवृद्धि के नए-नए कीर्तिमान स्थापित करेगा. राष्ट्र का तो पता नहीं हाँ सरकार नें ताबडतोब महंगाई बढ़ाकर जरूर आम आदमी को बुरी तरह चूसने का कीर्तिमान स्थापित किया. राष्ट्र को आर्थिक संवृद्धि मिली या नहीं मिली किन्तु पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों की आर्थिक संवृद्धि में चार चाँद जरूर लग गए देश का एक चौथाई संसाधन 100 पूंजीपति के कब्जे में चला गया, इधर देश के 22 करोड़ लोग भूखे पेट सोने को अभिसप्त है 5 करोड बच्चों को पर्याप्त पोषक पदार्थ नहीं मिल रहा है अब तेल की कीमतें बढ़ी है तो जाहिर है कि (ट्रांसपोटेशन) खाद्यान ढुलाई भाड़ा बढ़ेगा तो खाद्यान की कीमतें अपने आप बढ़ेंगी 22 करोड भूखे पेट सोने वालों का आकड़ा बढकर 32 करोड़ हो जायेगा 5 करोड़ कुपोषित बच्चों का आकड़ा 10 करोड़ के आकडे को छू लेगा इस बीच मनमोहन जब भी बोलेंगे तो ओबामा समेत सभी अंतर्राष्ट्रीय नेता सुनेंगे जिन्हें मनमोहन की जनविरोधी नीतियों का फायदा पहुँच रहा है अगर कोई नहीं सुन पायेगा तो वो भारत का आम आदमी क्योंकि कुपोषण से उसके कान के पर्दे सूख चुके होंगे।
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यह लेख विस्फोट.कॉम पर १२ जुलाई को प्रकाशित हो चुका है