सोमवार, 19 अक्तूबर 2009

पाकिस्तान में नहीं है सुरक्षित हिन्दू-सिख परिवारों के मानव अधिकार

पाकिस्तान में हिन्दू-सिख परिवारों के मानव अधिकारों को कुचला जा रहा है और पाकिस्तानी सरकार तमाशबीन बनकर तमाशा देख रही है हिन्दू-सिख परिवारों को धर्म परिवर्तन हेतु धमकाया जा रहा है इतना ही नहीं वहां के हिन्दू परिवारों की लड़कियों को ज़बरदस्ती मुसलमान बना लिया जाता है बहुत से कट्टरपंथी मुसलमान इस मुहिम पर बड़ी मुस्तैदी से काम कर रहे हैं कि हिंदुओं को और ख़ासतौर पर उनकी बेटियों को मुसलमान बनाया जाए । पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष २००५-६ में लगभग पचास हिंदू लड़कियों ने इस्लाम क़बूल किया था। पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं का कहना है कि " हमने तो जैसे-तैसे वक़्त गुज़ार लिया लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए पाकिस्तान में हालात अच्छे नहीं हैं । हम बहुत डर में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। हमारे बुज़ुर्गों ने पाकिस्तान में रहने का फ़ैसला करके बहुत बड़ा ख़तरा मोल लिया था।”
अगस्त १९४७ में पाकिस्तान बनते समय उम्मीद की गई थी कि वो मुसलमानों के लिए एक आदर्श देश साबित होगा लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था कि पाकिस्तान एक मुस्लिम देश ज़रूर होगा मगर सभी आस्थाओं वाले लोगों को पूरी धार्मिक आज़ादी होगी। पाकिस्तान के संविधान में ग़ैर मुसलमानों की धार्मिक आज़ादी के बारे में कहा भी गया है, “देश के हर नागरिक को यह आज़ादी होगी कि वह अपने धर्म की अस्थाओं में विश्वास करते हुए उसका पालन और प्रचार कर सके और इसके साथ ही हर धार्मिक आस्था वाले समुदाय को अपनी धार्मिक संस्थाएँ बनाने और उनका रखरखाव और प्रबंधन करने की इजाज़त होगी।” मगर आज के हालात पर ग़ौर करें तो पाकिस्तान में ग़ैर मुसलमानों की परिस्थितियाँ ख़ासी चिंताजनक हैं । उनकी पहचान पाकिस्तानी पहचान में खो सी गई है, बोलचाल और पहनावा भी मुसलमानों की ही तरह होता है, वे अभिवादन के लिए मुसलमानों की ही तरह अस्सलामुअलैकुम और माशाअल्लाह, इंशाअल्लाह जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं । पाकिस्तान में हिंदुओं की ज़्यादातर अबादी सिंध में है । सिंध और पंजाब में रहने वाले हिंदुओं के हालात में भी ख़ासा फ़र्क नज़र आता है सिंध में हिंदू अपने अधिकारों के लिए संघर्ष भी करते नज़र आते हैं लेकिन लाहौर में रहने वाले हिंदू जैसे पूरे तौर पर सरकार पर निर्भर हैं और उन पर सरकार की निगरानी भी है ।
इधर तालिबानियों के निशाने पर आए सिख परिवार पलायन करने को मजबूर है पिछले दिनों औरकज़ई ऐजेंसी इलाक़े में तालिबान चरमपंथियों ने जज़िया (सुरक्षा कर) नहीं चुकाने पर सिख धर्म के लोगों को घरों को तोड़ दिया लंबे समय से सिख समुदाय के लोग इस इलाक़े में रहते आए हैं और औरकज़ई एजेंसी में मोरज़ोई के नज़दीक फ़िरोज़खेल में लगभग ३५ घर सिखों के हैं। तालिबान और सिख समुदाय के बीच जज़िया तय भी हुआ था, लेकिन ऐसा माना जाता है कि रक़म के बहुत अधिक होने के वजह से सिख समुदाय इसे नहीं दे सके. इन इलाक़ों में पाकिस्तान सरकार की पकड़ बहुत ही कमज़ोर होने के कारण मूकदर्शक बनी तमाशा देख रही है, इसलिए तालेबान चरमपंथियों के ख़िलाफ़ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है और किसी कार्रवाई की उम्मीद भी नहीं की जा सकती भारत सरकार ने इस मामले पर केवल चिंता जता कर अपनी जिम्मेदारी पूरी करती दिखाई दी जो कि चिंता का विषय है ।
पिछले चार सालों में पाकिस्तान से करीब ५ हजार हिंदू तालिबान के डर से भागकर भारत आ गए, कभी वापस न जाने के लिए। अपना घर, अपना सबकुछ छोड़कर, यहां तक की अपना परिवार तक छोड़कर, आना आसान नहीं है। लेकिन इन लोगों का कहना है कि उनके पास वहां से भागने के अलावा कोई चारा नहीं था। २००६ में पहली बार भारत-पाकिस्तान के बीच थार एक्सप्रेस की शुरुआत की गई थी। हफ्ते में एक बार चलनी वाली यह ट्रेन कराची से चलती है भारत में बाड़मेर के मुनाबाओ बॉर्डर से दाखिल होकर जोधपुर तक जाती है। पहले साल में ३९२ हिंदू इस ट्रेन के जरिए भारत आए। २००७ में यह आंकड़ा बढ़कर ८८० हो गया। पिछले साल कुल १२४० पाकिस्तानी हिंदू भारत आए जबकि इस साल अगस्त तक एक हजार लोग भारत आए और वापस नहीं गए हैं। वह इस उम्मीद में यहां रह रहे हैं कि शायद उन्हें भारत की नागरिकता मिल जाए, इसलिए वह लगातार अपने वीजा की अवधि बढ़ा रहे हैं। राना राम पाकिस्तान के पंजाब में स्थित रहीमयार जिले में अपने परिवार के साथ रहता था। अपनी कहानी सुनाते हुए उसने कहा- वह तालिबान के कब्जे में था। उसकी बीवी को तालिबान ने अगवा कर लिया। उसके साथ रेप किया और उसे जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाया। इतना ही नहीं, उसकी दोनों बेटियों को भी इस्लाम कबूल करवाया। यहां तक की जान जाने के डर से उसने भी इस्लाम कबूल कर लिया। इसके बाद उसने वहां से भागना ही बेहतर समझा और वह अपनी दोनों बेटियों के साथ भारत भाग आया। उसकी पत्नी का अभी तक कोई अता पता नहीं है।
विडंबना यह है भारत में शरणार्थियों के लिए कोई नीति नहीं है। पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों के लिए काम करने वाले सीमांत लोक संगठन के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढ़ा का मानना है कि- पाकिस्तान के साथ बातचीत में अथवा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत सरकार कभी पाकिस्तान में हिदुंओं के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार व अत्याचार का मुद्दा नहीं उठाती है। उन्होंने कहा- २००४-०५ में १३५ शरणार्थी परिवारों को भारत की नागरिकता दी गई, लेकिन बाकी लोग अभी भी अवैध तरीके से यहां रह रहे हैं। यहां पुलिस इन लोगों पर अत्याचार करती है। उन्होंने कहा- पाकिस्तान के मीरपुर खास शहर में दिसंबर २००८ में करीब २०० हिदुओं को इस्लाम धर्म कबूल करवाया गया। बहुत से लोग ऐसे हैं जो हिंदू धर्म नहीं छोड़ना चाहते लेकिन वहां उनके लिए सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं। पाकिस्तानी सरकार से तो पाकिस्तानी हिन्दुओं-सिखों के मानव अधिकारों की सुरक्षा की उम्मीद करना बेमानी है किन्तु क्या पाकिस्तानी हिन्दुओं-सिखों के मानव अधिकारों की सुरक्षा की उम्मीद भारत सरकार से की जा सकती है ? ।